मेरी कलम से….
1995 के दौर की बात है मुझे पोलियो आभियान से जुड़ने का मौका मिला उस समय मैं छा़त्र जीवन को जी रहा था, तथा छात्र राजनीति के तहत समाज को समझने का प्रयास कर रहा था, तभी पोलियो अभियान के
प्रचार प्रसार ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया। मैंने एज ए वाॅलिटियर इस अभियान को सफल बनाने के उददेश्यसे सहयोग देना शुरू कर दिया। तब मुझे फिरोजाबाद की मलिन बस्तियों में नारकीय जीवन जी रहे उन मजदूरपरिवारो से रु-ब-रु होने का मौका मिला। इन मलिन बस्तियों में सड़के, नालियां  नही थी, जगह जगह जल भरावगन्दगी के ढेर, तथा लोग पानी की किल्ल्त से जूझ रहे थे। अशक्षित समाज और उनके बच्चो की दयनीय, भयावह स्थिति, कुपोषित बच्चो , इनेमिक महिलाऐं तथा पर्दा प्रथा चाहर दीवारी में रहकर जिन्दगी गुजारने वाली अशक्षित महिलाओं की दुर्दषा देखी…….जिससे  में  काफी आहत हुआ, में चिन्तित रहने लगा कि आखिर ऐसा क्या किया जाये ? इस दबेकुचले, मुलभुत सुविधाओं वंचित समाज को कैसे मुख्य धारा से जोड़ा जाये? यहाॅं सट्टा माफिया, साहूकार और चरस व स्मैक के सप्लायर्स ने इस क्षेत्र भोली भाली, मासूम, लाचार, कमजोर, गरीब जनता को अपने जाल में जकड़ लिया था। इन माफियों के हाथ काफी लम्बे थे। इनके खिलाफ कोई मुंह  खोलने को तैयार नहीं था। इस अशिक्षित समाज में इन माफियों का भय व्याप्त था। जब मैंने  इनके खिलाफ लड़ाई की बात की तो मेरे साथी मुझ से  किनारा करने लगे। पिता मुहम्मद सलीम एवं परिवार के सदस्य और कुछ साथियों के सहयोग से मुझे आगे बढ़ने का हौसला मिला।

यहाॅ बालिकाओ को शिक्षा दिलाना अपराध सा माना जाता था। परन्तु मैंने यह ठान लिया था किइस अशिक्षा के अंधरे को रोशन करने के लिए के लिए कुछ भी करना होगा ? वह में करूँगा। मेरे साथ इस समाज को
जागरूक करने के लिए कोई भी साथ आने को तैयार नही था। जिसमें महिलाएं तो बिल्कुल नही, इसकी गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने छोटे भाई फरहत आलम (जो रोड दुर्घटना के कारण अब हमारे बीच नही है) और छोटी बहन शबाना को साथ लिया तथा परिवार के और सदस्यों ने भी आगे बढ़नेका साहस दिखाया, लेकिन इस बीच मै माफियाओ की आँखों की किरकिरी बन गया। मेरा साहस नहीं डिगा और मुझे अपने साथियों से हौसला मिलने लगा। इन्हीं साथियों की मदद से बाल श्रमिक जो दिन में काम करते थे, उन बच्चो को शिक्षित करने के उद्देश्स  छब्बीस शिक्षा केंन्द्र खोले। इन स्कूल से जिन बच्चो ग्रहण की और संस्था ने उन बच्चो  को आगे की शिक्षा प्राप्त कराने के उददेश्य से मुख्यधारा में जोड़ा, जिससे उनकी आगे की पढ़ाई पूरी हुई। इन क्षेत्रो  समाज के लिए काम करते-करते कब  पाँच वर्ष का समय बीत गया, इस का एहसास मुझे नहीं हुआ और इन्हीं लोगों से मुझे “समाज सेवी” की उपाधि मिल गई, आखिर कार मेरी व मेरे साथींयो  कीमेहनत रंग लाई और हमारे साथ बड़ी संख्या में लोग जुड़ने लगे छोटे भाई बहन और कुछ साथींयो की मदद से हम लोगो ने घरों में जागरूकता मीटिंगे की, और जगह जगह जागरूकता कार्यक्रम जैसे बालश्रम के खिलाफ रैलियां, धार्मिक गुरुओ की मीटिंगे कर मलिन बस्तियों में रह रहकर इन परिवारों को क्षेत्र में पनप रही बुराईंयों से आगाह किया। इस बीच हम साथींयो ने तय किया कि इस अशिक्षा के अँधेरे एवं माफियाओ के भय को समाप्त करने के लिए हमें  एक संस्था का गठन करना होगा और सभी की राय से इस अँधेर को रौशनी देने का काम केवल चिराग कर सकता है और चिराग सोसायटी का गठन किया गया। जिसका रजिस्ट्रशन 2001 में कराया गया।

संस्था ने सर्वे कराया जिसमें काफी चौकाने वाले तथ्य सामने आये जो बेहद भयावय (डराने ) थे। क्षेत्र मे योग्य डाॅक्टर्स का न होना, सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयो की कमी, जुआ सट्टा आदि बुराईंयों की बजह से परिवारों का पिछड़ापन और अशिक्षा का अन्धेरा 300 परिवारों पर भी एक हाई स्कूल छात्र का न होना बड़ी चिन्ता का विषय था। संस्था ने सर्वप्रथम विभिन्न तरह के विकास कराने के लिए विभागों के साथ “एडवोकेसी“ की तथा माफियाओं के खिलाफ पोस्टर अभियान शुरू किया इस पोस्टर के माध्यम से समाज को एक सन्देश देने का प्रयास किया गया, कि जुआ सटटा स्मैक से जिंदगियाँ बर्बाद हो रही हैं।

 इस पोस्टर का उदघाटन तत्वकाली  जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक के द्वारा कराया गया। जिससे माफियाओ में बेचैनी पैदा होगयी और प्रशासन ने माफियों के खिलाफ संस्था की इस मुहिम मे आगे बढ़कर बड़ी कार्यवाहियाॅं की कई माफियाओं को खिलाफ गैंगस्टार मे कार्यवाही कर जेल भेजा जिससे  संस्था के कार्यकर्ताओं को हौसलों की उड़ान मिली………. संस्था  के  इस सफल प्रयास से ही समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी, यही वजह है, कि आज बड़ी संख्या में इन क्षेत्रो में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट युवा आसानी स े मिल जायेंगे।  के माध्यम से हज़ारो बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा गया वे बच्चे आज के युवा हैं 

जो लगातार तरक्की कर रहे हैं। मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि संस्था ने जिन बच्चों को वोलन्टीयर्स  के रूप में अपने साथ जोड़ा था उस समय वे बच्चे बालश्रम कर रहे थे। संस्था के प्रयासो से इन बच्चों को जो बालश्रम अपनी बेड़ियों में जकड़े हुए था। उन बच्चों को संस्था ने आजाद कराया। आज वही बच्चे पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, डब्ल्यू0एच0ओ0, यूनीसेफ एवं विभिन्न तरह की सरकारी और गैर-सरकारी संस्था मेँ कार्य कर रहे हैं । इसमें काफी संख्या में महिलायें भी हैं। आज वही महिलाएं उस चाहर दीवारी को तोड़कर अपने परिवार के साथ काॅंधे से काॅधा मिलाकर समाज को जागरूक कर रहीं हैं। और परिवार के डेवलपमेंट में एक अहम भूमिका निभा रही हैं। संस्था ने जिस अँधेरे को मिटाने के लिए जो संकल्प लिया था काफी हद तक संस्था अपने मकसद में कामयाब हुई है।

जनपद फिरोजाबाद के समस्त विभागों में चिराग़ का महत्वपूर्ण स्थान है तथा संस्था  विभिन्न विभागों में सदस्य के रूप में विराजमान है। आज संस्था का फिरोजाबाद एवं उसके आस पास के जनपदों में
शासन-प्रशासन एवं जनता के बीच एक अलग स्थान है। संस्था का नाम बड़ी इज्जत के साथ समाज में लिया जाता है। इसके अतरिक्त संस्था ने अपने कार्य को विस्तार दिया और संस्था भटके हुए, दुःखी या बीमार……., घायल या परेशान, परिवार से बिछुड़े हुए सताये हुए, लावारिस अवस्था में फुटपाथ पर सोते हुए देख-रेख और सरंक्षण से महरूम आदि बच्चों एवं महिलाओ के संरक्षण के लिए कार्य कर रही है। हज़ारो  बच्चों को संस्था के माध्यम से सरंक्षण दिलाया गया है। ऐसे बच्चे जिनके परिजनों ने  आस छोड़ दी थी कि अब उनके बच्चे कभी उन्हें नहीं मिल पायेंगे। न उम्मीदी की इस किरन को चिराग़ ने रोशन कर दिखाया तथा उनके घर के चिराग़ तलाश कर उनकी झोली में डाल दिये। ऐसे हज़ारो परिजन संस्था के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। मेँ यकीन दिलाता हूँ कि चिराग़ सोसायटी दिन-प्रतिदिन समाज की भलाई के लिए तत्पर तैयार रहेगी। ऐसा मेरा विश्वास है।

 

डॉ ज़फर आलम
(निर्देशक) संस्थापक
चिराग़ सोसायटी
शीतल खाॅ रोड, फ़िरोज़ाबाद