Chiragh's effort change & Create golden turn of life, lost children

We don't realize how blessed and lucky we are. Maybe by reading this story, you will realize the reality of the society we live in. So, sharing with you one of the Rescue Story.

Rekha, a 15-year-old minor always dreamt of eradicating poverty, of studying, of achieving heights, and flying high in life. One fine day, she met a lady named Bubbly who motivated her to take up a job and live a life of respect. However, no one knew what happened but one fine day Rekha just disappeared.
er family was shattered. They looked for her everywhere but were only left helpless. Contacting police was also of no use for they refused to register FIR. Days passed and all the light seemed to die. Her mother had lost all hope when one day she received a call from Rekha. “Mom please help me”, was all she had to say. Whatever she told her mother left everyone broken. She told her that she had been bought by someone in Uttar Pradesh and did not know exactly where she was. She told her all the stories of how the four guys over there tortured her, raped her, and treated her like a prostitute.

Her mother straightaway contacted the CHILD HELPLINE 1098 and pleaded to rescue and protect her daughter. Chiragh Society (NGO), Firozabad, Uttar Pradesh directed by Zafar Alam contacted local police and also NGO, West Bengal for registering FIR. The West Bengal police contacted Chiragh Society back and assured all the help and started their journey to Firozabad.

Zafar Alam was that time suffering from tormenting kidney pain but could not have left this midway. He did not lose heart and waited for the West Bengal police team and Rekha’s family to reach Firozabad where they themselves joined them and started their journey to rescue Rekha from Tundla. Everything was properly planned at the railway station itself. SHO, Tundla was contacted after which Rekha was rescued. In that moment, she knew that God had listened to her finally and that he has also send angels on Earth and not just demons.

"बचपन कुछ भी करा सकता है

एक ऐसी कहानी है जो एक बच्चे के जीवन को समाप्त कर सकती थी,रेलवे स्टेशन मथुरा पर बेहोशी की अवस्था में घायल बच्चा जिसके पैर में एक बड़ा जख्म और उसमें बज बजाते कीड़े….जब चाइल्डलाइन की टीम ने देखा तो उसे आनन-फानन में जिला अस्पताल में भर्ती कराया 02 दिन बाद होश में आने पर बच्चे की काउंसलिंग लगातार तीन दिनों तक की गई तो उसने बताया कि उसके माता पिता की मृत्यु हो चुकी है और वह इसी तरह भीख मांग कर खाता है लगातार तीन दिन तक चाइल्डलाइन की टीम के प्रयास सफल हुए और हरियाणा में रहने वाले उसके माता पिता को चाइल्डलाइन की टीम ने खोज निकाला काश…! अगर इस टीम की निगाह उस बच्चे पर नहीं पड़ती तो शायद उसके साथ कुछ भी अनहोनी हो सकती थी…. धन्यवाद चिराग की इस टीम को जिसने उस बच्चे के जीवन को बचाने एवं उसके माता-पिता की तलाश करने में जो अहम भूमिका निभाई उसके लिए संस्था उनको मुबारकबाद देती है इसी तरह सफलता की सीढ़ियों को चढ़ते रहें और हर उस बच्चे के परिवार को रोशन करने में अपनी अहम भूमिका निभाने का प्रयास करते रहें…..उस माता-पिता से पूछिए कि उन्होंने 3 माह तक अपने दर्द को  किस तरह से बर्दाश्त किया होगा! 

एक माता पिता अपने बच्चे के लापता हो जाने की स्थिति में किस  तरह की तकलीफों को झेलते हैं रातों की नींद और दिन का चैन कहीं खो जाता है, ऐसे लाखों बच्चे देश के अंदर भटक रहे मेरा अनुरोध है इस देश के नागरिकों से कि एक कॉल बच्चे की जिंदगी को बदल सकता है…..चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 पर कॉल अवश्य करें आपका एक कॉल उस बच्चे के जीवन को बदलने में कारगर होगा!

"मात्र 30 मिनट के अंदर चाइल्ड हेल्पलाइन की एक कॉल ने 15 बच्चों का जीवन बचाया 

नॉनस्टॉप ट्रेन को रोकना एक जोखिम था लेकिन चिराग की टीम ने तत्परता दिखाते हुए 15 बच्चों को रेस्क्यू  किया जिन्हें तस्करी कर दिल्ली ले जाए जा रहा था शायद किसी ने नहीं सोचा होगा के इस ट्रेन में जो बच्चे तस्करी कर ले जाए जा रहे हैं शायद वे अब कभी अपने घर नहीं पहुंच पाएंगे लेकिन कॉलर की एक सूचना चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 प्राप्त होती है और टीम तत्काल एक बड़ा एक्शन लेते हुए आरपीएफ व जीआरपी के साथ मिलकर इस ट्रेन में सवार 15 बच्चों को रेस्क्यू करने में सफलता प्राप्त करती है बच्चों की काउंसलिंग होने के बाद पता चलता है कि ऐसे और भी बच्चे अक्सर इन्हीं ट्रेनों से झारखंड से दिल्ली या मुंबई ले जाए जाते हैं आधे से अधिक बच्चे कभी लौट कर नहीं आते बच्चों के मुताबिक उनके साथ सभी तरह का शोषण होता है और गुलामों जैसा जीवन बिताने को मजबूर होते हैं माता-पिता की आर्थिक तंगी इस जगह बच्चों को लाकर खड़ा कर कर देती है ,ऐसा नहीं है कि हर माता-पिता अपने बच्चों से बाल श्रम कराना चाहते हैं कई बच्चे ऐसे भी होते हैं जो डायरेक्ट तस्करों की संपर्क में आते हैं और अचानक ही  उनकी दुनिया बर्बाद हो जाती है उन मासूमों को क्या पता कि यह लोग जो उनके बहुत बड़े हमदर्द बन रहे हैं दूसरे तस्कर के हाथ में जाने के बाद वे उनसे 

कभी नहीं मिलेंगे मानव तस्करी दुनिया के अंदर बहुत बड़ा व्यापार है इस तस्करी के जरिए लाखों बच्चे हर वर्ष पूरी दुनिया में खरीदे और बेचे जाते हैं
मानव तस्कर सदैव ऐसे कमजोर, गरीब और अनपढ़ लोगों को अपना शिकार बनाते हैं जिन्हें काम की अत्यधिक जरूरत है या जो कठिनाइयों या परिवारिक संकट का सामना कर रहे हों मानव तस्कर ऐसा दिखाते हैं कि वे उनकी समस्या का समाधान कर रहे हैं परंतु इसके विपरीत वे उन्हें गुलाम बनाकर व्यवसायिक शोषण बलपूर्वक श्रम करवा कर उन्हें आधुनिक गुलामी की स्थिति में पहुंचा देते हैं।
बच्चों की तस्करी का तात्पर्य है:- कि धमकी या बलपूर्वक के जोर जबरदस्ती व अन्य तरीकों से धोखाधड़ी, जालसाजी,अधिकार या निर्बलता की स्थिति का दुरुपयोग या दूसरे व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति की सहमति हासिल करने के लिए भुगतान या लाभ देना या प्राप्त करने की जरिए कानूनी या गैर कानूनी ढंग से सीमाओं के भीतर ,आर या पार व्यक्तियों की खरीद-फरोख्त की जाती है काश कॉलर चाइल्ड हेल्प लाइन का यूज नहीं करता तो शायद इन 15 बच्चों का जीवन नहीं बचाया जा सकता था

दीपावली पर इतना बड़ा तोहफा दोनों बच्चों को पाकर पिता की खुशी का ठिकाना ना रहा!

                       यह कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं घटना दिनांक नवंबर 2019 की है रेलवे मथुरा जं पार्किंग के पास एक लावारिस
                          बच्चा बेहोशी की स्थिति में पड़ा था आउटरीच के दौरान चाइल्ड लाइन की टीम की निगाह लावारिस बच्चे पर पड़ी बच्चा तेज-
                        तेज कराह रहा था जिसकी सूचना चाइल्डलाइन टीम ने आरपीएफ रेलवे जंक्शन मथुरा को दी और बच्चे को अपनी अभिरक्षा
                  में लेकर जिला अस्पताल में भर्ती कराया डॉक्टर द्वारा बताया गया कि इस बच्चे के एक हाथ में फ्रैक्चर है कई दिनों तक
चाइल्डलाइन की टीम जिला अस्पताल में बच्चे के साथ रही जहां बच्चे को अपने हाथों से खाना खिलाना से देखभाल की जब
बच्चे को होश आया तो चाइल्डलाइन टीम ने बच्चे की काउंसलिंग की जिससे पता चला कि बच्चे का एक भाई जो उससे छोटा है
3 माह पहले इसी स्टेशन से बिछड़ गया गया था बच्चा लगातार अपने भाई की तलाश में स्टेशन,बस स्टैंड या उसके आसपास
इलाके में घूमता रहा और किसी ऑटो रिक्शा ने उसका एक्सीडेंट कर दिया जिसकी वजह से उसका हाथ फ्रैक्चर हो गया छोटी
उम्र का मासूम लावारिस अवस्था में अपनी तकलीफ को लिए हुए इधर-उधर घूमता रहा!
पूरा मामला इस तरह से है के पति पत्नी के बीच विवाद के कारण मां अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके मथुरा आ गई
और कुछ ही दिनों के अंदर उसने एक दूसरे व्यक्ति से विवाह कर लिया बच्चों की नानी ने कुछ दिनों बाद ही दोनों बच्चों को घर
से निकाल दिया कि जाओ अपने पिता के पास और बच्चे स्टेशन एवं विभिन्न कूड़ा घरों से कूड़ा बीनने लगे और एक दिन
अचानक एक दूसरे से अलग हो गए बच्चे ने अपनी पूरी जानकारी चाइल्डलाइन को दी और चाइल्डलाइन टीम ने बच्चे को बाल
कल्याण समिति के आदेश से राजकीय बाल गृह शिशु मथुरा में प्रवेश करा दिया जब यह बच्चा बाल ग्रह पहुंचा तो उसने देखा
उसका दूसरा छोटा भाई जो उससे बिछड़ गया था वह भी उस बालग्रह में रह रहा है क्योंकि 3 माह पूर्व उसका छोटा भाई जो
लावारिस अवस्था में स्टेशन पर घूम रहा था चाइल्डलाइन ने उस छोटे मासूम को लावारिस अवस्था में पाया और बाल
कल्याण समिति के आदेश से बाल गृह में प्रवेश करा दिया और दोनों बच्चों की मुलाकात उस बाल गृह में होती है इसके बाद
चाइल्डलाइन टीम द्वारा बच्चों की दोबारा काउंसलिंग की जाती है काउंसलिंग के आधार पर उसके पिता की तलाश की जाती
है और चाइल्डन को जानकारी प्राप्त होती है कि उसका पिता जो आगरा में रहता था अब आगरा में ना रह कर भोपाल में रह

रहा है और उसने भी दूसरा विवाह कर लिया है कई दिनों के लगातार प्रयास के बाद बच्चों के पिता करण से जब बात हुई और पूछा आपके बच्चे कहां हैं? तो पिता करण ने बताया कि उसके बच्चे अपनी मां के साथ मथुरा में रह रही है जब करण को इस सच्चाई से रूबरू कराया गया कि कि उसके बच्चे नानी के घर नहीं कूड़ा बीनते थे और आज इस स्थिति में है तो बच्चों का पिता
करण फूट-फूट कर रोने लगा! इस दर्दनाक कहानी का अंत यह है कि उसका पिता करण मथुरा आता है और अपने दोनों बच्चों को अपनी अभिरक्षा में प्राप्त करता है और वह कहता है कि मैं इस काम के लिए चाइल्ड हेल्प लाइन रेलवे चिराग सोसाइटी की प्रशंसा करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि अगर यह संस्था इस रेलवे स्टेशन पर काम नहीं करती तो शायद मेरे बच्चे आज मेरे साथ दिवाली
दिवाली जैसे खुशी के पर्व पर मेरे साथ नहीं होते और अंत में करण ने सभी को दीपावली की शुभकामनाएं दी! पति पत्नी की एक झगड़े ने बच्चों की जिंदगी को बर्बाद कर दिया उनका भविष्य क्या होना था और क्या हो गया? और दोनों ने

अलग-अलग विवाह कर लिया बच्चों की फिक्र किसको थी मां ने शादी करने के बाद बच्चों को बाहर कर दिया पिता ने भी दूसरी शादी कर ली और बच्चे रोड से कूड़ा चुनने लगे यह एक सामाजिक बुराई है हम अपनी जिंदगी को खुशनुमा बनाने के लिए अपने बच्चों की जिंदगी को कुर्बान कर देते हैं